इम्तहान के करीब डेढ़ महीनें बाद फाइनल का पाँचवाँ प्रश्नपत्र जिसे वायवा वोसे कहते हैं

,सम्पादित हुआ । उस समय तक फाइनल के चारो प्रश्न पत्र के नम्बर यूनिवर्सिटी में आ चुके थे और नगेन्द्र नें उनका पता लगा लिया । प्रथम वर्ष के तीन और फ़ाइनल के चार पेपरों -इन सातों पेपरों को मिलाकर आप मुझसे छः नम्बरों से आगे थे । यह मुझे और नगेन्द्र को पता था । वायवा के इम्तहान हेतु डा ० व्रजाधीश प्रसाद आये । आप तो जानते ही हैं कि वे अन्धे हैं ,पर फिर भी उत्तर के महानतम अंग्रेजी विशारदों में से एक हैं । कालेज में ही हम सब विद्यार्थी उनके सामनें एक -एक करके बुलाये गये ।  उनके सहायक के रूप में मेरे मित्र नगेन्द्र उनके साथ बैठे थे । वायवा समाप्त होनें के बाद प्रत्येक विद्यार्थी के नम्बर डा ० व्रजाधीश बोल देते थे और नगेन्द्र लिख देते थे । यह काम अत्यन्त गुप्त रूप से किया जाता था । आपको वायवा के बाद पैन्शठ नम्बर मिले । वे इस प्रकार बोलते थे -सिक्स फाइव । मेरे मित्र सिंह नें लिख लिया -फाइव सिक्स अर्थात छप्पन । जब मेरा नम्बर आया तो मुझे फिफ्टी सिक्स अर्थात फाइव सिक्स अर्थात तथा नगेन्द्र नें मेरी ओर देखकर मुस्कराया और लिखा सिक्स फाइव अर्थात पैंसठ । डा ० व्रजाधीश अन्धे होनें  कारण सहायक पर निर्भर थे और उनका सहायक था भी तो कालेज का अँग्रेजी अध्यापक । वायवा ख़त्म होने पर उन्होंने नम्बर तालिका पर अपनें हस्ताक्षर कर दिये । उन्हें क्या पता था कि ठाकुर ब्राम्हण के नाम पर कौन सी चाल चली जा रही है । इस प्रकार मैं  वायवा में तुमसे नौ नम्बर आगे हो गया ।पण्डित जी , आपकी छः नम्बर की बढ़त जाती रही और मैं तीन नम्बर से आगे रहकर कालेज में अपनी कक्षा में प्रथम हो गया । विक्रमादित्य सनातन धर्म कालेज ठाकुरों की विरासत है और मैनें ठाकुरों की इज्जत बचा ली । अब दस वर्ष बीत चुके हैं । हम दोनों ही शिक्षक बन चुके हैं मुझे अपनें उस समय के कृत्य पर ग्लानि हो रही है । मैं आपसे उम्र में बड़ा हूँ और मैं कई वर्षों से सोचता था कि जब कभी आपसे मिलना होगा तो मैं अपनें कुकृत्य के लिये क्षमा माँग लूँगा । मैं पाप का बोझ लेकर मरना नहीं चाहता । कई बीमारियों नें मुझे ग्रस्त कर लिया है । अवस्थी जी ,आप मुझे क्षमा कर दें और यह कहकर उन्होंने मेरे पैर छूने चाहे । मैनें उन्हें छाती से लगा लिया और कहा कि मित्र आज तुम मेरी आँखों में और अधिक ऊँचें उठ गये हो । अंकतालिका की ऊँचाई अब एक वास्तविकता बन गयी है । क्योंकि जिस सहजता के साथ तुमनें अपनें अहँकार को छोड़कर अपनी उम्र से छोटे एक भाई को बड़ा कहकर स्वीकारा है ,उस से निश्चय ही तुम मुझसे बड़े हो गये हो । उन्हें सम्भवतः राम गढ़ जाना था और मैं दिल्ली के लिये ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहा था । वे बाद में रामगढ़ डिग्री कालेज के प्राचार्य बनें और राम गढ़ से राजपूत रेजीमेन्ट के मेजर पृथ्वी सिंह से मेरी मुलाकात एक बार दिल्ली में षडमुखानंद हाल में हो रहे अखिल भारतीय एन ० सी ० सी ० अधिकारी बैठक में हुयी तो मुझे पता चला कि रमण सिंह जो राम गढ़ के एक अत्यन्त नामी गिरामी विद्वान मानें जाते हैं उन्होंने डी ० एच  ० लारेन्स पर शोध लिखकर डॉक्टरेट भी ले ली है और कई बार कालेज की गोष्ठियों में वे अपनें विद्यार्थी दिनों की याद  करते हुये आदर भरे शब्दों में मेरे नाम का स्मरण करते हैं । सेवा निवृत्ति के दो वर्ष बाद ही रमण सिंह जी का देहान्त हो गया । मैं अभी माँ धरित्री की गोद  में पल रहा हूँ और जब कभी मन में पुराने मित्रों की याद आती है तो रमण सिंह जी का लम्बा शरीर व रोबीला चेहरा स्मृति में उभर आता है और उनकी उदारता मन को छू लेती है । दरअसल उन दिनों अँग्रेजी में प्रथम श्रेणी या नजदीक के अंक लेने वाले व्यक्ति कम ही होते थे । बहुत से डिग्री कॉलेजों में अँग्रेजी एम ० ए ० के पुराने थर्ड क्लास ही अध्यापन का काम कर रहे थे । ऐसे में  यह तो सुनिश्चित ही था कि मुझे अध्यापन का कोई कार्य मिल जायेगा । ,पर मैं किसी स्तरीय डिग्री कालेज में प्रवेश कर पाऊँगां या नहीं ,इस पर एक प्रश्न चिन्ह लगा था । अँग्रेजी के विभागाध्यक्ष प्रो ० बी ० डी ० मिश्रा नें मुझसे कहा कि लखीम पुर खीरी के युवराज दत्त कालेज में अँग्रेजी की एक टेम्परेरी जगह है ,क्योंकि एक अध्यापक एक वर्ष की छुट्टी लेकर लन्दन जा रहे हैं । यदि मैं चाहूं तो वे इस दिशा में मेरी मदद कर सकते हैं । मैं अभी प्रस्ताव पर विचार ही कर रहा था कि एक दिन जब मैं चरित्र प्रमाण पत्र लेनें के लिये कालेज में गया हुआ था ,मुझे मेरे पुराने प्राध्यापक कैलाश नाथ पाण्डेय मिल गये । उन्होंने कहा कि उनके एक रिश्तेदार सोने लाल मिश्र एटा जिले के पटियाली में एक इण्टर कालेज के प्रिन्सिपल हैं और उन्होंने चाहा है कि कोई एक योग्य तरुण उनके कालेज में इण्टर कक्षाओं के लिये अंग्रेजी अध्यापन का उत्तरदायित्व संभ्भाल ले । पाण्डेय जी नें कहा कि इस कॉलेज के डिग्री कालेज बनने की संभ्भावना है क्योंकि काँग्रेस का स्थानीय नेतृत्व जो कालेज का प्रबन्ध संभ्भाले हैं ,इस दिशा में प्रयत्नशील हैं । मैनें उन्हें मिश्रा जी की बात बतायी तो उन्होंने कहा कि अस्थायी जगह से स्थायी जगह जाना अच्छा रहेगा भले ही वह इण्टर कालेज की जगह क्यों न हो । मैं पहले ही कह चुका हूँ कि पाण्डेय जी से मेरा मन मिला हुआ था । पाण्डेय जी नें मुझे अनुशंसा पत्र लिख दिया और मैं उसे लेकर छोटी लाइन की गाड़ी पर बैठकर पटियाली की ओर चल पड़ा । मैनें यह तो पढ़ा था कि पटियाली अमीर खुसरो का जन्म स्थान है और फर्रुखाबाद व कासगंज के बीच में एक छोटा सा स्टेशन है । मैं उस कस्बे  की रूपरेखा और स्थानीय रीति रिवाजों से सम्पूर्णतः अपरिचित था ।